केंद्र के विवादित कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों के आंदोलन को सोमवार को आठ महीने पूरे हो गए.
इस मौक़े पर पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा की 200 महिला किसान, प्रदर्शन को आगे बढ़ाते हुए ‘किसान संसद’ के लिए दिल्ली के जंतर मंतर पर इकट्ठा हुईं.
उन्होंने तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने की मांग करते हुए नारे लगाए.
महिला किसान संसद का संचालन नेता और स्पीकर सुभाषिनी अली ने किया. इसकी शुरुआत राष्ट्रगान से हुई. जिसके बाद आठ महीने के दौरान जान गंवाने वाले किसानों की याद में दो मिनट का मौन रखा गया.
सुभाषिनी अली ने कहा, “आज की संसद महिला शक्ति को दिखाएगी. महिलाएं किसानी भी कर सकती हैं और देश भी चला सकती हैं. आज यहां हर कोई नेता है.”
उन्होंने दोहराया कि तीन ‘काले क़ानूनों’ के ख़िलाफ़ किसानों का प्रदर्शन और एमएसपी के लिए मांग जारी रहेगी. साथ ही उन्होंने कहा, “सरकार हमें (किसानों को) आतंकवादी, खालिस्तानी जैसे अलग-अलग नामों से बुला रही है. लेकिन अगर उनमें हिम्मत है तो उन्हें आतंकवादियों और खालिस्तानियों का उगाया खाना नहीं खाना चाहिए.”
नीतू खन्ना नाम की एक किसान नेता ने कहा कि ये शर्मनाक है कि सरकार किसानों के साथ ग़लत व्यव्हार कर रही है जबकि वही देश को ज़िंदा रखते हैं.
एक अन्य वक्ता नव किरन ने आवश्यक वस्तु (संशोधन) क़ानून को वापस लेने की मांग की और इसे महिला-विरोधी, ग़रीब विरोधी और आम आदमी विरोधी बताया.
ये क़ानून कैसे महिला विरोधी है ये बताते हुए उन्होंने कहा, “हमने देखा है कैसे इस क़ानून की वजह से खाने के तेल और रसोई गैस की क़ीमतें बढ़ी हैं. इससे महिलाएं महीने के ख़र्चे में से जो थोड़े बहुत पैसे बचा लेती थीं, वो नहीं बचा पाएंगी.”
सोमवार को किसान संसद का फोकस इसी क़ानून पर रहा. इस क़ानून के तहत अनाज, दालों, तेल, प्याज़ और आलू जैसी चीज़ों को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है.
65 साल पुराने इस क़ानून में संशोधन कर इन चीज़ों के लिए भंडारन की सीमा को ख़त्म कर दिया गया है. अब सिर्फ राष्ट्रीय आपदा, अकाल की स्थिति में ही ऐसा किया जा सकता है.
सरकार का कहना है कि इस संशोधन से किसानों को फायदा होगा और कृषि क्षेत्र में निवेश आएगा.
अभिनेत्री और सामाजिक कार्यकर्ता गुल पनाग भी किसान संसद में शामिल हुईं.
उन्होंने भी आवश्यक वस्तुएं (संशोधन) क़ानून की कमियों को गिनाया. उन्होंने कहा, “नए क़ानून से काला बाज़ारी को बढ़ावा मिलेगा. लोग नहीं समझ रहे हैं कि इस नए क़ानून से किसानों पर नहीं मध्यम वर्ग पर असर पड़ेगा.” उन्होंने कहा कि इन क़ानूनों को रद्द करना ही होगा.
‘किसान संसद’ कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के आंदोलन का हिस्सा है. संसद का मॉनसून सत्र चल रहा है ऐसे में किसानों ने प्रतिकात्मक विरोध के तहत जंतर मंतर पहुंचकर अपनी ये समानांतर संसद लगाई है. और इसके ज़रिए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद कर रहे हैं.
दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने जंतर मंतर पर अधिकतम 200 किसानों को 9 अगस्त तक प्रदर्शन करने की विशेष इजाज़त दी है. जंतर मंतर संसद भवन से कुछ मीटर की दूरी पर ही है.