केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने राज्य सभा में एक सवाल के जवाब में कहा कि मैनुअल स्कैवेंजिंग यानी हाथ से मैला ढोने की वजह से कोई मौत नहीं हुई है.
सामाजिक कार्यकर्ता इसपर तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं और सरकार के इस जवाब को संवदेनहीन बता रहे है. समाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि मौत के बाद भी ऐसे लोगों की गरिमा छीन ली गई.
देश में मैनुअल स्कैवेंजिंग ‘हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ के तहत प्रतिबंधित है.
राज्य सभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने बताया कि ऐसे 66,692 लोग हैं जो हाथ से मैला उठाने का काम करते हैं.
हाथ से मैला ढोने वाले कितने लोगों की मौत हुई है, इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “हाथ से सफाई के कारण किसी के मौत होने की सूचना नहीं है.”
दरअसल सरकार हाथ से मैला सफाई के कारण हुई मौत को मान्यता नहीं देती है और इसके बजाय इसे ख़तरनाक तरीक़े से शौचालय टैंक और सीवर की सफाई के कारण हुई मौत बताती है.
इससे पहले संसद के पिछले सत्र के दौरान दस मार्च को अठावले ने कहा था, “हाथ से मैला साफ़ करने के कारण किसी की मौत नहीं हुई. बहरहाल, शौचालय टैंक या सीवर की सफाई के दौरान लोगों के मौत की ख़बर है”
सामाजिक कार्यकर्ता सरकार के जवाब से हैरान हैं. सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने कहा कि मंत्री ने ख़ुद ही स्वीकार किया था कि सीवर की सफाई के दौरान 340 लोगों की मौत हुई है.
उन्होंने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ‘‘वो तकनीकी रूप से बयान दे रहे हैं और हाथ से मैला सफाई को सूखा शौच बता रहे हैं. इसलिए उन्हें अपने बयान में स्पष्ट रूप से ज़िक्र करना चाहिए कि सूखे शौच से लोगों की मौत नहीं हो सकती है बल्कि शौचालय के टैंक के कारण लोगों की मौत होती है. सरकार हर चीज़ से इनकार कर रही है और इसी तरह हाथ से मैला सफाई के कारण होने वाली मौत से भी इनकार कर रही है.”
दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच के सचिव संजीव कुमार ने पीटीआई से कहा कि मौतों की सूचना छिपाई जा रही है और सरकार इससे पूरी तरह इनकार कर रही है जो निंदनीय है.
उन्होंने कहा, “दिल्ली में ही काफी मौतें हुई हैं. ये काफ़ी दुखद है कि सरकार उनकी मौत का संज्ञान नहीं ले रही है. जिन लोगों की मौत हुई है उनकी गरिमा मरने के बाद भी छीन ली गई.”