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दांडी से दिल्ली ‘मिट्टी सत्याग्रह यात्रा’, दिल्ली बॉर्डर पर बनेंगे किसानों के शहीद स्थल

दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन को चार महीने से ज़्यादा का वक़्त हो गया है. ऐसे में किसान आंदोलन को मजबूत करने और उसके समर्थन में अलग- अलग कार्यक्रम किए जा रहे हैं. ब्रिटिश हुक़ुमत के ख़िलाफ़ महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुए असहयोग आंदोलन के तर्ज पर मिट्टी सत्याग्रह यात्रा दांडी से दिल्ली की ओर रवाना हो गई है.

संयुक्त किसान मोर्चा के मुताबिक़ जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय NAPM मिट्टी सत्याग्रह का आयोजन कर रहा है. मिट्टी सत्याग्रह यात्रा की शुरुआत 30 मार्च को गुजरात के दांडी से शुरू हुई है जो देश के अलग- अलग हिस्सों से होती हुई दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलनों तक जाएगी.

यह यात्रा गुजरात के कई जिलों से होकर, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के कई जिलों से गुजरती हुई 5 अप्रैल की सुबह शाहजहांपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन स्थल पर पहुंचेगी. इसके बाद यात्रा का अगला पड़ाव टिकरी बॉर्डर होगा और इसके बाद 6 अप्रैल की सुबह सिंघु बॉर्डर और शाम 4 बजे गाजीपुर बॉर्डर पहुंचेगी.

मिट्टी सत्याग्रह यात्रा के दौरान की तस्वीर

 

मिट्टी सत्याग्रह यात्रा के दौरान पूरे देश से आई मिट्टी किसान आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों को समर्पित की जाएगी और बॉर्डर पर शहीद स्मारक बनाए जाएंगे.

असहयोग आंदोलन से प्रेरित है मिट्टी सत्याग्रह यात्रा

संयुक्त किसान मोर्चा के मुताबिक़ आंदोलन के दौरान अब तक 320 से ज़्यादा किसानों ने शहादत दी है इसके बावजूद यह आंदोलन अहिंसक सत्याग्रह के साथ सरकार की आक्रामकता और दमन का सामना कर रहा है. इस आंदोलन की जड़े भारत के स्वतंत्रता संग्राम के साथ जुड़ी हैं. 1919 में आए रॉलेट एक्ट के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण ढंग से विरोध कर रहे हज़ारों बेकसूरों पर जालियांवाला बाग में ब्रिटिश हुकूमत ने गोलियां चलवाईं जिससे पूरा देश आक्रोश से भर गया. इसी दौर में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन का नारा देकर इस बेरहम हुकूमत के क़ानूनों का सहयोग ना करने का आह्वान किया.

संयुक्त किसान मोर्चा के मुताबिक़ कृषि, किसानों, खाद्य सुरक्षा को बचाने के लिए आज नमक नहीं, मिट्टी की ज़रूरत है. इस उद्देश्य से युवाओं ने शिद्दत के साथ “मिट्टी सत्याग्रह’ का आयोजन किया है. इस सत्याग्रह के माध्यम से गाँव की सड़कों पर पहुँचना देश के जल, जंगल, जमीन, प्राकृतिक संसाधनों और साथ ही आजीविका को बचाने की कोशिश की जा रही है. यह मांग लोकतंत्र और संविधान के मूल्यवान ढांचे को बचाने के लिए भी है.

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