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कोरोना वैक्सीन लगावाने में महिलाएं पीछे, इसके पीछे वजह क्या है?

भारत में महिलाओं के मुक़ाबले पुरुषों ने ज़्यादा वैक्सीन लगवाई है. मंगलवार को सामने आए सरकारी आंकड़ों से ये पता चला है. इन आकड़ों ने देश के टीकाकरण अभियान में लैंगिक असमानता को उजागर किया है, जिसने ग्रामीण आबादी को भी नुक़सान पहुंचाया है. आकड़ों के मुताबिक़, भारत में 10 करोड़ 10 लाख पुरुष ऐसे हैं जिन्हें या तो वैक्सीन की एक या दोनों डोज़ मिल गई है. ये आकड़ा महिलाओं से 17% ज़्यादा है. वैक्सीन लगवा चुके कुल लोगों में से 54% पुरुष हैं.

राजधानी दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में महिलाओं ने सबसे कम टीका लगवाया है. वहीं दक्षिण भारत में केरल और सेंट्रल इंडिया में छत्तीसगढ़ ऐसे राज्य हैं जहां वैक्सीन लगवाने वालों में महिलाएं पुरुषों से आगे हैं.

पश्चिमी राज्य गुजरात के एक बड़े सरकारी अस्पताल में चिकित्सा अधीक्षक प्रशांत पंड्या ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, “हम नोटिस कर रहे हैं कि ख़ासकर कस्बों और गांवों में पुरुष महिलाओं से पहले वैक्सीन लगवाना ठीक समझते हैं, क्योंकि उन्हें काम के लिए बाहर जाना होता है, वहीं महिलाओं को घर में रहना है.”

स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि कुछ अफ़वाहों की वजह से भी ऐसा हो रहा है. उनके मुताबिक़, ऐसी अफ़वाहें हैं कि वैक्सीन की वजह से महिलाओं के पीरिएड्स में दिक़्क़त आती है और प्रजनन क्षमता भी कम हो जाती है. हालांकि सरकार ने इन चिंताओं को ख़ारिज किया है.

दिल्ली में स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ काम कर चुकी एक पूर्व नौकरशाह सुधा नारायणन ने रॉयटर्स से कहा, “सरकार को ग्रामीण भारत में जागरुकता अभियान को तेज़ करना चाहिए जिनमें महिलाओं को वैक्सीन की अहमियत बताई जाए और उन्हें कहा जाए कि वैक्सीन लेने के लिए वो भी ख़ुद को प्राथमिकता दें. ”

नारायणन ने कहा कि वैक्सीन लेने के लिए महिलाओं को आगे आना होगा नहीं तो ये अंतर और बढ़ेगा. 30 करोड़ की आबादी वाले भारत में पुरुषों की संख्या महिलाओं से 6% ज़्यादा है. लैंगिग असमानता को लेकर रॉयटर्स ने जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक प्रवक्ता से संपर्क किया तो उनसे कोई जवाब नहीं मिला.

गुजरात और पड़ोसी राजस्थान के ग्रामीण इलाक़ों की कुछ महिलाओं ने प्रशासन से मांग की है कि उन्हें घर पर आकर वैक्सीन लगा दी जाए. इन महिलाओं का कहना है कि वो अपने बच्चों को पीछे छोड़कर अस्पताल नहीं जा सकती हैं.

गुजरात के वाडनगर शहर में चार बच्चों की मां लक्ष्मीबेन सुथार का कहना है, “मैं पढ़ना-लिखना नहीं जानती हूं. मैं वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन कैसे करवाऊंगी. सरकार को दवाई हमारे पास भेजनी चाहिए.”

भारत की वैक्सीनेशन पॉलिसी पर तेज़ी से काम किया गया है लेकिन केंद्र सरकार अब तक घर-घर जाकर वैक्सीन देने से बचती रही है. सरकार का कहना है कि वैक्सीन को अभी सिर्फ इमरजेंसी इस्तेमाल की मंज़ूरी मिली है और वैक्सीन लेने वालों को कुछ वक़्त के लिए मॉनिटर करना पड़ता है कि कहीं उनको कोई साइड इफेक्ट तो नहीं हो रहा.

सरकार के ताज़ा आकड़ों से ये भी पता चला है कि शहरों में रहने वाले भारतीयों को ग्रामीणों के मुक़ाबले तेज़ी से वैक्सीन मिल रही है. ऐसा एक पॉलिसी की वजह से ही हुआ जिसके चलते अमीर शहर ग्रामीण ज़िलों से ज़्यादा वैक्सीन ख़रीद पा रहे थे.

हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार को नीति में बदलाव किया और कहा कि 21 जून से सभी व्यसकों को मुफ़्त वैक्सीन दी जाएगी. ऑनलाइन रेजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को लेकर आ रही शिकायतों के बाद सरकार सीधे टीकाकरण केंद्र पर आकर वैक्सीन लगवाने की सुविधा को बढ़ाएगी.

भारत ने अब तक अपनी व्यस्क आबादी के सिर्फ क़रीब 5% हिस्से का ही पूरी तरह टीकाकरण किया है, यानी सिर्फ इतनी आबादी को ही अब तक वैक्सीन की दोनों डोज़ मिल पाई है. भारत में लगभग 95 करोड़ व्यस्क लोग हैं.

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