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कृषि मंत्री पर संसद में किसानों के अपमान का आरोप

फोटो- RSTV

संसद में कृषि मंत्री के बयान पर किसानों ने नाराज़गी जताई है. संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि देशभर के किसान कृषि क़ानूनों के खिलाफ एकजुट हैं. शुक्रवार को कृषि मंत्री ने कहा था कि ये सिर्फ़ एक राज्य का मसला है.

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन के बीच सरकार और किसानों के बीच तकरार जारी है.  26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड के बाद 6 फ़रवरी को किसानों ने देशभर में चक्का जाम बुलाया. चक्का जाम शांतिपूर्ण बताते हुए किसानों ने संसद में कृषि मंत्री के बयान पर आपत्ति जताई. उन्होंने कृषि मंत्री पर संसद में किसानों के संघर्ष का अपमान करने का आरोप लगाया.

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक़ संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि ‘कल (शुक्रवार) कृषि मंत्री ने संसद में ये कह कर किसानों के संघर्ष का अपमान किया कि सिर्फ़ एक ही  राज्य के किसान कृषि क़ानूनों के विरोध में हैं. आज देशव्यापी चक्का जाम से ये साबित हो गया कि देशभर के किसान कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ एकजुट हैं.  ‘

किसानों ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के राज्य सभा में दिए बयान पर ये बात कही है. शुक्रवार (5/02/2021) को  कृषि मंत्री ने कहा था कि सिर्फ़ एक राज्य के किसान कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ हैं.

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने संसद में क्या कहा? 

राज्य सभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर हो रही चर्चा के दौरान कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि ‘किसान आंदोलन पर हैं एक राज्य के लोग ग़लतफ़हमी का शिकार हैं.’  हालांकि उनकी इस बात पर विपक्ष ने आपत्ति जताई तो कृषि मंत्री ने कहा कि ‘एक ही राज्य का मसला है.’ उन्होंने कहा कि ‘किसानों को इस बात के लिए बरगलाया गया है कि ये क़ानून आपकी ज़मीन को ले जाएंगे लेकिन मैं कहता हूं कि कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग में कोई एक प्रावधान ऐसा बताएं?’

कृषि मंत्री ने यह भी कहा कि ‘हमने एक के बाद एक उनको प्रस्ताव देने का प्रयत्न किया और साथ में ये भी कहा कि अगर भारत सरकार संशोधन के लिए तैयार है तो इसके मायने ये नहीं लगाना चाहिए कि कृषि क़ानूनों में कोई गलती है.’

उन्होंने कहा कि ‘किसान संगठनों और विपक्षी दलों की ओर से लगातार इन कानूनों को ‘काले कानून’ की संज्ञा दी जा रही है. हालांकि अभी तक किसी ने यह नहीं बताया कि आखिर इन कानूनों में ‘काला’ क्या है?’

विपक्षी दल कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि ‘खरगे जी, दुनिया जानती है कि पानी से खेती होती है, *** से खेती सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है, भारतीय जनता पार्टी *** की खेती नहीं कर सकती है.दुनिया जानती है पानी से खेती होती है. खून से खेती करने का काम कांग्रेस करती है, बीजेपी खून से खेती नहीं करती.’ हालांकि उनके इस बयान को राज्य सभा की कार्यवाही से हटा दिया गया.

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ कई राज्यों के किसान कर रहे हैं आंदोलन

केंद्र सरकार इससे पहले भी ये बात कह चुकी है कि सिर्फ़ पंजाब के किसान ही इन क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं. हालांकि लगभग ढाई महीने से दिल्ली की सीमाओं पर अलग-अलग राज्यों के किसान कृषि क़ानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं. सिंघु बॉर्डर पर ज़्यादातर पंजाब से आए किसान हैं तो शहाजहांपुर में ज़्यादातर राजस्थान और महाराष्ट्र के किसान आंदोलन कर रहे हैं. ऐसे ही टीकरी बॉर्डर पर ज़्यादातर किसान पंजाब और हरियाणा से आए हैं. वहीं ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर उत्तर प्रदेश से आए किसानों की तादाद सबसे ज़्यादा है. इसके अलावा मध्य प्रदेश के किसान भी कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन में शामिल हैं.

इतना ही नहीं 6 फ़रवरी को किसानों की ओर से बुलाए गए चक्का जाम का असर भी देशभर में देखने को मिला. देश के राजमार्गों पर किसानों का हुजूम उमड़ पड़ा. जम्मू कश्मीर से लेकर कर्नाटक तक किसानों ने तीन घंटे का चक्का जाम किया.

उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड, दिल्ली को छोड़कर जम्मू-कश्मीर से लेकर पंजाब, हरियाणा, बिहार,  झारखंड समेत उत्तर भारत के सभी राज्यों दक्षिण भारत में तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना भी चक्का जाम के आह्वान का असर देखने को मिला. कांग्रेस, वामपंथी दलों के अलावा तमाम राजनीतिक दलों का भी किसानों को साथ मिला.

 

 

 

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