लांसेट जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर में ये दावा किया गया है कि फाइज़र की वैक्सीन लेने वालों में कोरोना वायरस के डेल्टा वैरिएंट के ख़िलाफ़ एंटीबॉडीज़ का स्तर पांच गुना तक कम हो सकता है. कोरोना के डेल्टा वर्जन की पहचान सबसे पहले भारत में हुई थी.
अध्ययन में ये भी कहा गया है कि एंटीबॉडीज़ का ये स्तर बढ़ती उम्र के साथ लोगों में कम होने लगता है और आगे चलकर ख़त्म हो जाता है. ऐसे में उन लोगों में बूस्टर डोज़ दिए जाने के पक्ष में इसे अतिरिक्त साक्ष्य के तौर पर देखा जा सकता है, जिनके संक्रमित होने का ख़तरा ज़्यादा है,.
हालांकि ब्रिटेन की फ्रैंसिस क्रिक इंस्टीट्यूट के रिसर्चरों का कहना है कि सिर्फ एंटीबॉडी के स्तर से वैक्सीन के असर के बारे में पक्के तौर पर कोई दावा नहीं किया जा सकता है, इसके लिए सुनिश्चित आबादी के हिस्से पर स्टडी करने की ज़रूरत होती है.
इस नई जानकारी से ब्रिटेन की उस योजना को समर्थन मिला है जिसके तहत फाइज़र की वैक्सीन की दो खुराकों के बीच समय अंतराल कम करने पर विचार किया जा रहा है.
अध्ययन के मुताबिक़, फाइज़र वैक्सीन की पहली खुराक के बाद कोरोना के B.1.617.2 वर्जन के लिए एंटीबॉडी के कम मात्रा में बनने के आसार होता हैं जबकि B.1.1.7 (अल्फा) वैरिएंट के ख़िलाफ़ ज्यादा एंटीबॉडी बनती है.
वहीं ख़बर ये भी है कि ब्रिटेन में दवाओं का नियमन करने वाली एजेंसी ने शुक्रवार को फाइज़र की कोरोना वैक्सीन को 12 साल से 15 साल के बच्चों पर इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है.
अमेरिका और यूरोप में पहले ही फाइज़र और बायोनटेक की इस वैक्सीन को बच्चों पर इस्तेमाल की मंजूरी दी जा चुकी है.